Saturday, 29 July 2017

Kashmir samasya ka samadhan

सोच रहा था कि कुछ अलग विषय पर लिखा जाए परंतु देश की मौजूदा राजनीति में ही इतने मसले दिख जाते हैं कि ध्यान कहीं और जाता ही नहीं। 
मौजूदा राजनीतिक हालात में विपक्ष और खासकर कांग्रेस की फजीहत होते देखकर इतना सुकून मिलता है जिसकी कोई सीमा नहीं है। एक तरफ जहाँ विपक्ष कमजोर हुआ , वहीं दूसरी ओर कांग्रेसी विधायकों में पार्टी छोड़ने की होड़ मची हुई है। 
कांग्रेसी विचारधारा का यही श्राद्ध यदि और पहले कर दिया गया होता तो आज हालात कुछ और होते।
खैर देर आए दुरुस्त आए...
जरा याद करें , कुछ हफ्तों पहले मणिशंकर अय्यर श्रीनगर गये थे ....कुछ सिविल सोसायटी के सदस्यों को लेकर जिसमें एक पत्रकार महोदय भी थे विनोद शर्मा ।
हुर्रियत नेता मिरवायज फारूख और अली शाह गिलानी से गले मिलकर ठहाके लगाते हुए उस वीडियो को आपने देखा ही होगा .... जिसमें गिलानी ने भारतीय सेना पर व्यंग्य पूर्ण कटाक्ष किया था और नालायक मणिशंकर ने जोरदार ठहाका लगाया था। 
न्यूज चैनलों पर जब यह वीडियो दिखाया गया तो कांग्रेस पार्टी ने अपने आप को इससे अलग कर लिया था।
बाद में जब पत्रकारों ने मणिशंकर से उसके आने की वजह पूछा , तो वह कहा था कि वो काश्मीर की मौजूदा हालात देखने आया है ... लोगों की परेशानियों को समझने आया है ... हुर्रियत नेताओं को काश्मीर समस्या के समाधान के लिए आगे आने को कहने आया है।
पत्रकारों के सामने एक बयान भी दिया था उसने ...उन हुर्रियत नेताओं के सामने जो बयान दिया था मैं उसे हूबहू यहाँ लिख रहा हूँ ...
"" जो भी काश्मीर से जुड़ा हुआ है वह जानता है कि , हम चाहें या ना चाहें घाटी में हुर्रियत का अपना अलग प्रभाव है , हुर्रियत को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं ""
अब इस बयान का जरा अर्थ समझें ...
मणिशंकर यह कहना चाहता था कि हुर्रियत के लीडरों की काश्मीरियों पर इतनी पकड़ है कि वे वहाँ के शहंशाह हैं ....चाहें तो घाटी को बंधक बना ले ...वहाँ आग लगा दें ... इनके बिना वहाँ परिंदा भी पर नहीं मार सकता है।
हुर्रियत के बारे में ऐसा मानना सिर्फ मणिशंकर का ही नहीं था , बल्कि कांग्रेस भी सालों से यही मानती आई थी। हुर्रियत को काश्मीर समस्या का एक मुख्य पक्षकार /पार्टी के रूप में भाव देना कांग्रेस की एक शातीर चाल थी । हुर्रियत को ना जाने कितनी बार केंद्र और राज्य की कांग्रेसी सरकारों ने धन देकर काश्मीर की शांति खरीदी थी , और ये इल्जाम तो फारुख अब्दुल्ला भी लगा चुके हैं।
पर आज क्या हालात हैं वहाँ ?
सात हुर्रियत नेताओं को जब NIA ने हाल में ही गिरफ्तार किया , तब घाटी के अन्य हुर्रियत आकाओं की घिघ्घी बंध गई ... दिन में तारे नज़र आने लगे ... आतंक फैलाने के लिए विदेशी फंड लेने की जाँच शुरू हो गई ....अपने गुस्से को दिखाने के लिए विरोध स्वरूप इन्होंने श्रीनगर में बंद का आह्वान कर दिया । 
... पर आश्चर्य कि जिस प्रकार से वहाँ के लोगों ने बंद को पूरी तरह से विफल कर दिया और लोगों ने हुर्रियत की अौकात बता दी , तो अब ये बातें बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर देती है ...काश्मीरी नागरिकों में हुर्रियत को लेकर कितनी खौफ थी या उनकी कितनी पकड़ थी उनकी ये सच्चाई अब सामने आ चुकी है।
यह कोई छोटी बात नहीं है क्योंकि बात निकलेगी तो दूर तक जाएगी। 
मेरा सीधा आरोप कांग्रेस पार्टी पर है जिसने हुर्रियत की ताकत और सामर्थ्य को जानते हुए भी , या ना जानने का ढोंग करते हुए देश के लोगों को गुमराह किया , हुर्रियत को भाव देते रहे थे ...कांग्रेसियों ने हमें अँधेरे में रखा ..... हुर्रियत का खौफ हमारे दिलों में बनाए रखा .... ये गद्दार हुर्रियत वाले एक तरफ तो काश्मीरी और पाकिस्तानी आतकियों को पनाह देते रहे थे , हथियार और पैसे मुहैया कराते रहे थे और दूसरी तरफ ये कांग्रेसी उन्हें सहयोग देते रहे।
हुर्रियत है क्या ? पाकिस्तानी दल्ले हैं साले , पैसों के लिए निर्दोष काश्मीरियों पर जुल्म ढाने वाले ....पहलेे पंडितों पर और अब बेगुनाह काश्मीरी लोगों पर .. ।
सच तो ये है कि हुर्रियत कुछ अलगाववादी नेताओं का एक गिरोह है जो चंद कट्टर काश्मीरी नौजवानों के दम पर समूची घाटी को बंधक बनाने का दम भरता है ..इनका काम घाटी और देश को अस्थिर करने के लिए पाकिस्तान , सउदी या अन्य देशों से फंड मंगाना , लोकल नागरिकों से जबरन धन उगाही करना , आतंकियों को पनाह देना , नौजवानों को भारत के खिलाफ उकसाना .....और विदेशी पैसों पर ऐश करना था।
परंतु अब मोदी सरकार के आने के बाद से सारा सीन ही बदल गया । पहले तो मोदी ने इन्हें काश्मीर का पक्षकार मानने से इनकार किया .... बातचीत के लायक नहीं माना .... इनके नेताओं की सुरक्षा में लगे सुरक्षाकर्मियों की संख्या में कटौती की ..... जाँच एजेंसियों को पीछे लगाया ...इनकी हैसियत को तौला , एजेंसियों ने इन पर निगाहें रखी ....और सबूत मिलते ही इन्हें दबोच  लिया गया। 
हक्के बक्के रह गए हुर्रियत वाले , इनके आका जो बचे हुए हैं डर के मारे सहमे हुए हैं...उन पर भी दबोचे जाने का खतरा मंडरा रहा है , वे स्तब्ध हैं , किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। 
टाॅप हुर्रियत नेता अली शाह गिलानी का बेटा और दामाद के साथ बिट्टा कराटे ("आजतक" चैनल के एक स्टिंग में बिट्टा कराटे ने बाईस पंडितो का कत्ल करने की बात स्वीकार की थी ) पकड़ा गया है।
आज काश्मीर घाटी में इनके समर्थन में ना कहीं प्रदर्शन हो रहे हैं ना पत्थरबाजी हो रही है और ना ही कोई अशांति है। 
घाटी शांत है ,लोग अपने अपने कामों में लगे हैं , अमरनाथ यात्रा भी निर्बाध चल रही है , सेना आतंकियों को ढूंढ कर मारने का अपना दैनिक काम कर रही है ।
अब यहाँ एक प्रश्न जरूर उठता है कि क्या ये काम पहले नहीं किया जा सकता था ? 
हुर्रियत पर क्या नकेल नहीं कसी जा सकती थी ? क्या उनके नेताओं को बाॅडीगार्ड मुहैया करवा कर हर साल करोड़ों रुपये का नुकसान करना आवश्यक था ? उन्हें धन देकर शांत करने की नीति सही थी ? उन्हें बातचीत में शामिल करके उनका भाव बढ़ाना जरूरी था ?
नेहरू तो काश्मीर समस्या के आरोपी हैं ही , उनके वारिसों ने भी इसे जान बूझकर समस्या बनाया और अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए सेक्युलर धर्म का निर्वहन बहुत ईमानदारी से किया ........
................एक तरफ जहाँ काश्मीर जलता रहा वहीं दूसरी तरफ ये देश मे सांप्रदायिक राजनीति करने के साथ साथ लूट और भ्रष्टाचार करते हुए शासन करते रहे ।
अतः इस पार्टी का श्राद्ध होते देखना एक सुखद अनुभूति का एहसास करना है।


हमें गर्व हैं मोदी जी आप पर... 
जय हिन्द जय भारत

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