Wednesday 27 December 2017

Golden History of India

जय सिया राम

बेला और कल्याणी कौन थी?
बेला और कल्याणी शायद आपने ये नाम सुने हों पहले। बेला तो पृथ्वीराज चौहान की बेटी थी और कल्याणी जयचंद की पौत्री। पृथ्वीराज चौहान महान देशभक्त था और जयचंद ने देश के साथ गद्दारी की थी, लेकिन उसकी पौत्री महान राष्ट्रभक्त थी। बात उन दिनों की है, जब हमारे देश पर विदेशी लुटेरों ने कब्जा कर लिया था और जो सबसे बड़ा लुटेरा था वह था मुहम्मद गौरी। हमारे देश को लूटकर वह अपने वतन गया था तो उसके गुरु ने देखते हुए स्वागत किया था।
''अस्लाम वालेकुम।''
''वालेकुम अस्लाम! आओ गौरी आओ! हमें तुम पर नाज है कि तुमने हिन्दुस्तान पर फतह करके इस्लाम का नाम रोशन किया है, कहो सोने की चिड़िया हिन्दुस्तान के कितने पर कतर कर लाए हो।'' गजनी के सर्वोच्च काजी निजामुल्क ने मोहम्मद गौरी का अपने महल में स्वागत करते हुए कहा।
''काजी साहब! मैं हिन्दुस्तान से सत्तर करोड़ दिरहम मूल्य के सोने के सिक्के, पचास लाख चार सौ मन सोना और चांदी, इसके अतिरिक्त मूल्यवान आभूषणों, मोतियों, हीरा, पन्ना, जरीदार वस्त्रा और ढाके की मल-मल की लूट-खसोट कर भारत से गजनी की सेवा में लाया हूं।''
''बहुत अच्छा! लेकिन वहां के लोगों को कुछ दीन-ईमान का पाठ पढ़ाया कि नहीं?''
''बहुत से लोग इस्लाम में दीक्षित हो गए हैं।''
''और बंदियों का क्या किया?''
''बंदियों को गुलाम बनाकर गजनी लाया गया है। अब तो गजनी में बंदियों की सार्वजनिक बिक्री की जा रही है। रौननाहर, इराक, खुरासान आदि देशों के व्यापारी गजनी से गुलामों को खरीदकर ले जा रहे हैं। एक-एक गुलाम दो-दो या तीन-तीन दिरहम में बिक रहा है।''
''हिन्दुस्तान के मंदिरों का क्या किया?''
''मंदिरों को लूटकर 17000 हजार सोने और चांदी की मूर्तियां लायी गयी हैं, दो हजार से अधिक कीमती पत्थरों की मूर्तियां और शिवलिंग भी लाए गये हैं और बहुत से पूजा स्थलों को नेप्था और आग से जलाकर जमीदोज कर दिया गया है।''
''वाह! अल्हा मेहरबान तो गौरी पहलवान!'' फिर मंद-मंद मुस्कान के साथ बड़बड़ाए, ''गौरे और काले, धनी और निर्धन गुलाम बनने के प्रसंग में सभी भारतीय एक हो गये हैं। जो भारत में प्रतिष्ठित समझे जाते थे, आज वे गजनी में मामूली दुकानदारों के गुलाम बने हुए हैं।''
फिर थोड़ा रुककर कहा, ''लेकिन हमारे लिए कोई खास तोहफा लाए हो या नहीं?''
''लाया हूं ना काजी साहब!''
''क्या?''
''जन्नत की हूरों से भी सुंदर जयचंद की पौत्री कल्याणी और पृथ्वीराज चौहान की पुत्री बेला।''
''तो फिर देर किस बात की है।''
''बस आपके इशारेभर की।''
''माशा अल्लाह! आज ही खिला दो ना हमारे हरम में नये गुल।''
''ईंशा अल्लाह!''
और तत्पश्चात्!
काजी की इजाजत पाते ही शाहबुद्दीन गौरी ने कल्याणी और बेला को काजी के हरम में पहुंचा दिया। कल्याणी और बेला की अद्भुत सुंदरता को देखकर काजी अचम्भे में आ गया, उसे लगा कि स्वर्ग से अप्सराएं आ गयी हैं। उसने दोनों राजकुमारियों से विवाह का प्रस्ताव रखा तो बेला बोली-''काजी साहब! आपकी बेगमें बनना तो हमारी खुशकिस्मती होगी, लेकिन हमारी दो शर्तें हैं!''
''कहो..कहो.. क्या शर्तें हैं तुम्हारी! तुम जैसी हूरों के लिए तो मैं कोई भी शर्त मानने के लिए तैयार हूं।
''पहली शर्त से तो यह है कि शादी होने तक हमें अपवित्र न किया जाए? क्या आपको मंजूर है?''
''हमें मंजूर है! दूसरी शर्त का बखान करो।''
''हमारे यहां प्रथा है कि लड़की के लिए लड़का और लड़के लिए लड़की के यहां से विवाह के कपड़े आते हैं। अतः दूल्हे का जोड़ा और जोड़े की रकम हम भारत भूमि से मंगवाना चाहती हैं।''
''मुझे तुम्हारी दोनों शर्तें मंजूर हैं।''
और फिर! बेला और कल्याणी ने कविचंद के नाम एक रहस्यमयी खत लिखकर भारत भूमि से शादी का जोड़ा मंगवा लिया। काजी के साथ उनके निकाह का दिन निश्चित हो गया। रहमत झील के किनारे बनाये गए नए महल में विवाह की तैयारी शुरू हुई।
कवि चंद द्वारा भेजे गये कपड़े पहनकर काजी साहब विवाह मंडप में आए। कल्याणी और बेला ने भी काजी द्वारा दिये गये कपड़े पहन रखे थे। शादी को देखने के लिए बाहर जनता की भीड़ इकट्ठी हो गयी थी। तभी बेला ने काजी साहब से कहा-''हमारे होने वाले सरताज! हम कलमा और निकाह पढ़ने से पहले जनता को झरोखे से दर्शन देना चाहती हैं, क्योंकि विवाह से पहले जनता को दर्शन देने की हमारे यहां प्रथा है और फिर गजनी वालों को भी तो पता चले कि आप बुढ़ापे में जन्नत की सबसे सुंदर हूरों से शादी रचा रहे हैं। शादी के बाद तो हमें जीवनभर बुरका पहनना ही है, तब हमारी सुंदरता का होना न के बराबर ही होगा। नकाब में छिपी हुई सुंदरता भला तब किस काम की।''
''हां..हां..क्यों नहीं।'' काजी ने उत्तर दिया और कल्याणी और बेला के साथ राजमहल के कंगूरे पर गया, लेकिन वहां पहुंचते-पहुंचते ही काजी साहब के दाहिने कंधे से आग की लपटें निकलने लगी, क्योंकि क्योंकि कविचंद ने बेला और कल्याणी का रहस्यमयी पत्र समझकर बड़े तीक्ष्ण विष में सने हुए कपड़े भेजे थे। काजी साहब विष की ज्वाला से पागलों की तरह इधर-उधर भागने लगा, तब बेला ने उससे कहा-''तुमने ही गौरी को भारत पर आक्रमण करने के लिए उकसाया था ना, हमने तुझे मारने का षड्यंत्र रचकर अपने देश को लूटने का बदला ले लिया है। हम हिन्दू कुमारियां हैं समझे, किसमें इतना साहस है जो जीते जी हमारे शरीर को हाथ भी लगा दे।''
कल्याणी ने कहा, ''नालायक! बहुत मजहबी बनते हो, अपने धर्म को शांतिप्रिय धर्म बताते हो और करते हो क्या? जेहाद का ढोल पीटने के नाम पर लोगों को लूटते हो और शांति से रहने वाले लोगों पर जुल्म ढाहते हो, थू! धिक्कार है तुम पर।'' इतना कहकर उन दोनों बालिकाओं ने महल की छत के बिल्कुल किनारे खड़ी होकर एक-दूसरी की छाती में विष बुझी कटार जोर से भोंक दी और उनके प्राणहीन देह उस उंची छत से नीचे लुढ़क गये। पागलों की तरह इधर-उधर भागता हुआ काजी भी तड़प-तड़प कर मर गया।
भारत की इन दोनों बहादुर बेटियों ने विदेशी धरती पराधीन रहते हुए भी बलिदान की जिस गाथा का निर्माण किया, वह सराहने योग्य है आज सारा भारत इन बेटियों के बलिदान को श्रद्धा के साथ याद करता है।
 जय श्री राम

Tuesday 19 December 2017

Great India Real Stories

कुतुबुद्दीन घोड़े से गिर कर मरा, यह तो सब जानते हैं, लेकिन कैसे? 

यह आज हम आपको बताएंगे..

वो वीर महाराणा प्रताप जी का 'चेतक' सबको याद है,
लेकिन 'शुभ्रक' नहीं!
तो मित्रो आज सुनिए कहानी 'शुभ्रक' की......

सूअर कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना में जम कर कहर बरपाया, और उदयपुर के 'राजकुंवर कर्णसिंह' को बंदी बनाकर लाहौर ले गया।
कुंवर का 'शुभ्रक' नामक एक स्वामिभक्त घोड़ा था,
जो कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया और वो उसे भी साथ ले गया।

एक दिन कैद से भागने के प्रयास में कुँवर सा को सजा-ए-मौत सुनाई गई.. और सजा देने के लिए 'जन्नत बाग' में लाया गया। यह तय हुआ कि राजकुंवर का सिर काटकर उससे 'पोलो' (उस समय उस खेल का नाम और खेलने का तरीका कुछ और ही था) खेला जाएगा..
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कुतुबुद्दीन ख़ुद कुँवर सा के ही घोड़े 'शुभ्रक' पर सवार होकर अपनी खिलाड़ी टोली के साथ 'जन्नत बाग' में आया।

'शुभ्रक' ने जैसे ही कैदी अवस्था में राजकुंवर को देखा, उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे। जैसे ही सिर कलम करने के लिए कुँवर सा की जंजीरों को खोला गया, तो 'शुभ्रक' से रहा नहीं गया.. उसने उछलकर कुतुबुद्दीन को घोड़े से गिरा दिया और उसकी छाती पर अपने मजबूत पैरों से कई वार किए, जिससे कुतुबुद्दीन के प्राण पखेरू उड़ गए! इस्लामिक सैनिक अचंभित होकर देखते रह गए.. 
मौके का फायदा उठाकर कुंवर सा सैनिकों से छूटे और 'शुभ्रक' पर सवार हो गए। 'शुभ्रक' ने हवा से बाजी लगा दी.. लाहौर से उदयपुर बिना रुके दौडा और उदयपुर में महल के सामने आकर ही रुका!

राजकुंवर घोड़े से उतरे और अपने प्रिय अश्व को पुचकारने के लिए हाथ बढ़ाया, तो पाया कि वह तो प्रतिमा बना खडा था.. उसमें प्राण नहीं बचे थे।
सिर पर हाथ रखते ही 'शुभ्रक' का निष्प्राण शरीर लुढक गया.. 

भारत के इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पढ़ाया जाता क्योंकि वामपंथी और मुल्लापरस्त लेखक अपने नाजायज बाप की ऐसी दुर्गति वाली मौत बताने से हिचकिचाते हैं! जबकि फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन की मौत इसी तरह लिखी बताई गई है।

नमन स्वामीभक्त 'शुभ्रक' को..
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Sunday 3 December 2017

Cure of Diebetes

Diebetes /  शुगर
एक नंगा सच.. जानिये.!
लूट मचाने के लिए दवा कंपनियाँ किस हद तक गिर सकती आप अनुमान भी नहीं लगा सकते ,
अभी कुछ समय पूर्व स्पेन मे शुगर की दवा बेचने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियो की एक बैठक हुई है ,दवाओ की बिक्री बढ़ाने के लिए एक सुझाव दिया गया है कि अगर शरीर मे सामान्य शुगर का मानक 120 से कम कर 100 कर दिया जाये तो शुगर की दवाओं की बिक्री 40 % तक बढ़ जाएगी ।

आपकी जानकारी के लिए बता दूँ बहुत समय पूर्व शरीर मे सामान्य शुगर का मानक 160 था दवाओ की बिक्री बढ़ाने के लिए ही इसे कम करते-करते 120 तक लाया गया है जिसे भविष्य मे 100 तक करने की संभावना है ।

ये एलोपेथी दवा कंपनियाँ लूटने के लिए किस स्तर तक गिर सकती है ये इसका जीता जागता उदाहरण है आज मैडीकल साईंस के अनुसार शरीर मे सामान्य शुगर का मानक 80 से 120 है 

अब मान लो दवा कंपनियो के साथ मिलीभगत कर इन्होने कुछ फर्जी शोध की आड़ मे नया मानक 70 से 100 तय कर दिया, अब अच्छा भला व्यक्ति शुगर टेस्ट करवाये और शुगर का सतर 100 से 110 के बीच आए ,तो डाक्टर आपको शुगर का रोगी घोषित कर देगा,

भय के कारण आप शुगर की एलोपेथी दवाएं लेना शुरू कर देंगे, अब शुगर तो पहले से सामान्य थी आपने जो भय के कारण शुगर कम करने की दवा ली तो उल्टा शरीर मे और कमजोरी महसूस होने लगेगी , 
और आप फिर इस अंधी खाई मे गिरते चले जाएंगे । 

और मान लो आप जैसे 2 -3 करोड़ लोग भी इस
साजिश का शिकार हुए तो ये एलोपेथी दवा कंपनियाँ लाखो करोड़ का व्यापार कर डालेंगी

एक नंगा सच.. जानिये.! क्या आप जानते हैं.............   

1997 से पहले fasting diebetes की limit 140 थी।
फिर fasting sugar की limit 126 कर दी गयी।
इससे world population में 14% diebetec लोग अचानक बढ़ गए।
उसके बाद 2003 में WHO ने फिर से fasting sugar की limit कम करके 100 कर दी।
याने फिर से total population के करीबन 70% लोग diebetec माने जाने लगे।

दरअसल diebetes ratio या limit तय करने वाली कुछ pharmaceutical कंपनियां थीं जो WHO को घूस खिलाकर अपने व्यापार को बढ़ाने के लिये ये सब करवा रही थीं।

और अपना बिज़नेस बढ़ाने के लिए ये किया जाता रहा।

लेकिन क्या आपको पता है कि
हकीकत में डायबिटीज को कैसे जांचना चाहिए ?

कैसे पता चलेगा कि आप डायबिटीज के शिकार हैं भी या नहीं ?

पुराने जमाने के इलाज़ के हिसाब से
डायबिटीज चेक करने का एक सरल उपाय है ---
आप की उम्र और + 100 
जी हाँ
यही एक सचाई है

अगर आपकी उम्र 65 है तो आपका सुगर लेवल खाने के बाद 165 होना चाहिये।
अगर आपकी age 75 है तो आपका नॉर्मल सुगर लेवेल खाने के बाद 175 होना चाहिए।
अगर ऐसा है तो इसका मतलब आपको डायबिटीज नहीं है।

ये होता है age के हिसाब से यानी.. 
So now you can count your diebetec limit as 100 + your age.

अगर आपकी उम्र 80 है तो फिर आपकी डायबिटिक लिमिट खाने के बाद 180 काउंट की जानी चाहिये।
मतलब अगर आपका सुगर लेवल इस उम्र में भी 180 है तो आप डायबिटिक नहीं हैं।
आपकी गिनती नॉर्मल इंसान जैसी होनी चाहिये।

लेकिन W.H.O. को अपने कॉन्फिडेंस में लेकर बहुत सारी फार्मा कम्पनियों ने अपने व्यापार के लिये सुगर लेवेल में उथल पुथल कर दी और आम जनता उस चक्रव्यूह में फंस गई।

No Doctor can guide u.
No one will advice u.
But its a bitter truth.!

उसके साथ साथ एक सच ये भी है कि--

अगर आपकी पाचन शक्ति उत्तम है तो आपको कोई टेंशन लेने की कोई जरूरत नहीं है
या फिर आप अपने जीवन में कोई टेंशन नहीं लेते।
आप अच्छा खाना खाते हो
आप जंक फूड, ज्यादा मसालेदार या तैलीय भोजन या फ़्राईड फूड नहीं खाते
आप रेगुलर योगा या कसरत करते हैं
और आपका वजन आपकी हाइट के हिसाब के बराबर है
तो आपको डायबिटीज हो ही नहीं सकती।
यही सत्य है, बस टेंशन न लें अच्छा खाना खाएं, एक्सरसाइज करते रहें।

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