Tuesday, 17 October 2017

Crackers ban in Delhi Supreme court

दिल्ली में पटाखों को लेकर सुप्रीम कोर्ट एवं अन्य लोगों के कथन सुनने के पश्चात, मुझे बहुत ही अजीब लग रहा है कि बिना तथ्यों को जाने ही कुछ भी आदेशित कर दिया जाता है.........

मैं ज्यादा क्वालीफाई व्यक्ति नहीं हूँ,.....

फिर भी आज से 25 वर्ष पूर्व पढ़े रासायन विज्ञान के आधार पर कह रहा हूँ कि बारूद जलाने से ना ही कार्बन डाई ऑक्साइड ना ही कार्बन मोनोऑक्साइड गैस निकलती है, (यहाँ मैं सिर्फ़ हिन्दुस्तान में बने पटाखों के परिपेक्ष्य में बात कर रहा हूँ , ना कि चीन में बने पटाखे ) क्योंकि बारुद में सल्फर होता है जो जलने पर ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया कर SO2 में बदल जाता है........!

तो जो सल्फर डाई ऑक्साइड गैस निकलती है, वो नमी को तेजी से सोख लेती है, यदि ये गैस सीधे फेफडों में चली जाए, तो आपके फेफडों को नमी सोखकर उन्हें अपना कार्य करने से रोक सकती है........!

किन्तु इस गैस का परमाण्विक भार कम होने के कारण ये कभी भी आपके फेफडों में नहीं प्रवेश करता, बल्कि बहुत तेजी से ऊपर की तरफ उठ जाता है..........!

यदि आपको इसका उदाहरण देखना हो तो फर्श पर बैठकर प्याज काटें, बहुत ज्यादा आंसू आएंगे। पुनः अत्यधिक ऊंचाई पर प्याज को काटें, अपेक्षाकृत आंसू कम आएंगे। क्यों......??

प्याज काटने के दौरान प्याज वातावरण में निहित ऑक्सीजन से क्रिया करके सल्फर डाई ऑक्साइड बनाता है, एवं आप सभी के शरीर में केवल आँख ही एक ऐसा भाग है, जो आवश्यकता पड़ने पर अतिरिक्त नमी छोड़ता है, और उक्त गैस उस नमी के सम्पर्क में आकर पानी की बूंद (आँसू) का रुप धारण कर लेती है........!!

आप इसे प्रायोगिक तौर पर आजमा सकते हैं, यदि आपके पास समय हो, तो ठीक इसी प्रकार,

दीपावली में पटाखे छोड़ने का प्रावधान हमारे पूर्वजों के द्वारा किया गया था । ताकि वातावरण की नमी को समाप्त किया जा सके.......!

आप में से जो भी लोग दीपावली को देर रात तक जागे होंगे (पूर्व में), आपने कभी ध्यान दिया था कि 11:00 बजे रात के बाद अचानक ओस क्यों गिरने लगता था?

 ये सब सल्फर डाई ऑक्साइड का कमाल था......!

वैसे पटाखे जलाने के दौरान माचिस और पटाखे का कागज बहुत मामूली CO2 या CO बनाती है जैसे  दाल में नमक के बराबर।

हमारे धर्म में प्रत्येक परम्परा के अन्दर एक वैज्ञानिक कारण होता है......!

परन्तु काश: इन हिये के अन्धो को कुछ समझ आये ???

शायद जज बेंच के सभी न्यायाधीश आर्ट साईड से होंगे, इसलिये तो किसी रासायनिक विज्ञानी की सलाह लेना भी उचित नहीं समझे.......!!

और 
तथाकथित प्रभावशाली आकाओं के अनावश्यक दबाव के कारण इस देश की बहुसंख्यक आबादी की भावनाओं की कद्र किये बिना एक तुगलकी फरमान जारी कर दिया ???

क्या यह फरमान तर्कसंगत है ???

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