Thursday 20 April 2017

Muslim fatva

जब भी मुसलमानों की भावनाएँ काफिरों से आहत होती हैं, तुरन्त उसको जान से मारने का फतवा जारी हो जाता है।
फतवा जान से मारने की एक ऐसी खुली धमकी है जिसका कानून भी सम्मान करता है। कानून भी समझता है कि काफ़िर का मारा जाना न्यायहित में अत्यंत आवश्यक है। भले हो वो देश काफिरों का ही क्यों न हो। ऐसे समय एक लोकतांत्रिक देश तुरन्त इस्लामिक स्टेट का रूप ले लेता है और कानून के मिलार्ड बिल्कुल उस तरह के तमाशबीन नज़र आते हैं जो किसी लड़की को संगसार की सज़ा मिलने पर दर्शक बन जाते हैं। भारत में अब तक असंख्य फतवे जारी हो चुके हैं पर हमारे मिलार्डों को इससे कभी ऑब्जेक्शन नहीं हुआ, क्योंकि ये एक शांतिप्रिय समुदाय द्वारा जारी फतवा होता है।
एक लोकतंत्र की सबसे बड़ी नाकामी यही है कि देश के संविधान के ऊपर फतवा राज चल रहा है। हमारे देश का बुद्धिजीवी वर्ग तीन तलाक के मामलों में घुसा हुआ है, मुस्लिम धर्म गुरुओं की इस तरह खुशामद की जा रही है जैसे भीख माँगा जा रहा हो। कॉमन सिविल कोड का मुद्दा भूलकर भी नहीं उठाया जाता की मुस्लिम वर्ग कहीं नाराज़ न हो जाये।
अगर लोकतंत्र को सही अर्थों में लागू करना है तो मिलार्डों को सबसे पहले फतवा देने वाले को ही कूटना चाहिए क्योंकि ये शरीयत नहीं खुल्लम खुल्ला गुंडागर्दी है और गुंड़ों का इलाज़ करना कानून का नैतिक दायित्व।

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