संघ के एक बड़े प्रचारक हैं … इंद्रेश कुमार जी
डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर की १२५ वीं जयंती के अवसर पर उन्हें दिल्ली के हंसराज महाविद्यालय में आमंत्रित किया गया था. संघके नेता का नाम सुनते ही वहां का माहौल और भी विषाक्त हो गया था. संघ, ब्राहमणवाद और मनुवाद के खिलाफ नारे लगने लगे थे. हरेक वक्ता आता और सिर्फ जहर उगलता. एक ने कह दिया कि "वी डोंट एक्सेप्ट रामा एस ए सिम्बल ऑफ़ सोशल हार्मोनी" यानि हम राम को सामजिक समरसता का प्रतीक नहीं मानते क्योंकि उस आर्य राम ने अनार्य बालि का छिपकर वध किया था।
जब इन्द्रेश कुमार जी की बारी आई तो उन्होंने माइक संभाला और इसी विषय से बोलना शुरू किया.उन्होने कहा कि मान लीजिये कि बालि अनार्य था तो फिर सुग्रीव क्या था?वो भी अनार्य था. दो अनार्य भाइयों के बीच किसी गलतफहमी के चलते झगड़ा था, झगड़े में बड़े भाई ने छोटे भाई को न सिर्फ मृत्यदंड की सजा दी थी. बल्कि उसकी पत्नी को अपने कब्जे में कर रखा था और उसके डर से सुग्रीव मारा-मारा फिर रहा था.
त्रिलोक के अंदर बालि के भय से किसी के अंदर ये साहस नहीं था कि वो सुग्रीव को न्याय दिला सके. राम ने सुग्रीव को न्याय दिलाने का संकल्प किया. बालि का वध किया. अब बालि के वध के बाद आर्य राम ने क्या किया?
रामने राज्य पर स्वयं कब्ज़ा नहीं किया बल्कि उस पर उसी अनार्य सुग्रीव को प्रतिष्ठित किया.
सुग्रीव की पत्नी रुमा को मुक्त कराकर राम ने उसे अपने अधीन नहीं किया बल्कि उसे ससम्मान सुग्रीव को सौंप दिया.
बालि के परिजनों के साथ भी अन्याय न हो इसलिये
राम ने उसकी पत्नी तारा को राज्य की मुख्य पटरानी के
पद पर सुशोभित किया और प्रधान सेनापति के पद पर
उसके बेटे अंगद को बिठाया.
उस राम को आप सवर्ण कहिये, क्षत्रिय कहिये, मनुवादी कहिये या जो भी कहिये पर सत्य यही है कि राम ने राज्य पर कब्ज़ा नहीं किया, राज्य की किसी संपत्ति को अपने उपयोग में नहीं लिया, रूमा या तारा को प्रताड़ित नहीं किया और न ही बालि के बेटे के साथ अन्याय होने दिया.
राम आपके लिये सवर्ण, क्षत्रिय या मनुवादी होंगें पर दुनिया के लिये राम न्याय की मूर्ति थे. इसके बाद उन्होंने श्रोताओं से मुखातिब होकर कहा कि अगर बालि अनार्य थे तो फिर हनुमान क्या थे? वोभी अनार्य थे, अब आप सब मुझे बतायें कि आपके अनुसार भारतवर्ष का कौन सा ऐसा आर्य है जिसके यहाँ देवता रूप में हनुमान पूजित नहीं हैं?
हाँ, खुद को अनार्य कहने वाले इन साहब के यहाँ ही हनुमान पूजित नहीं होंगे.
उन्होंने बोलना ख़त्म किया तो पूरी सभा-मंडली उनके पीछे थी, अब वहां उन दलित नेताओं के नाम के नारे नहीं बल्कि उनके नाम के जयकारे लग रहे थे. आयोजक उनसे कह रहे थे कि ये भीड़ आपके बोलने से पहले हमारी थी अब आपकी है.
सन्देश यही है, वंचित समाज से जुड़िये, उनके पास जाइये, उनसे दर्द सांझा करिए, उन्हें सत्य का ज्ञान कराइए. उनके अंदर सदियों से सिर्फ जहर और अलगाव ही भरा गया है. उनके अंदर की किसी शंका का समाधान करने उनके पास हमसे पहले ईसा वाले और इस्लाम वाले पहुँच जाते हैं. ये विष-बेल और न बढ़े इसकी जिम्मेदारी हमारी है. उनको बताइए कि हमारे हिन्दू समाज में जातियों का भेद नहीं था, लैंगिक असमानताएं नहीं थी. समाज के निचली पायदान पर बैठी शबरी माता के जूठे बेर खाने वाले श्रीराम के सखाओं में वानर वीर सुग्रीव थे तो निषाद राज केवट भी थे, हमारे महान सनातनी वैदिक सर्वहिन्दू समाज और हिंदुस्तान पर दुर्भाग्य की काली छाया उस दिन से पड़नी आरंभ हुई, जब विस्तारवाद की आकांक्षा वाले मजहबों का यहाँ पर पदार्पण हुआ, फिर अंग्रेजों ने हमारे धर्मग्रंथों सहित हमारे संस्कृति, हमारे संस्कारों का माखोल बनाना शुरू किया ओर रही सही कसर अंग्रेजों के जाने के बाद "ना हिन्दू, ना किसी ओर मजहब के" वस्तुतः रक्त मिश्रित – वर्णसंकर नस्ल की वंशवादी रीत सत्ता पर हावी हो गई। और इस घोर दुर्भाग्य का अंत भी तभी होगा। जब हम इन विस्तारवादियों, सत्तास्वार्थी वर्णसंकरोंं की चाल में नहीं आयें। धर्म जागरण में अपना वास्तविक सकारात्मक सहयोग करें ।
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