Monday, 30 October 2017

Medical emergency attacks

कुछ बिंदु जो दिखने में छोटे हैं परंतु भविष्य में बहुत बड़ी समस्याओं को जन्म दे सकते हैं -

१. आजकल अक्सर हॉस्पिटल मे डाक्टरो और कर्मचारियों से मार पीट की घटनाएँ हो रही है. किसी परिजन की मृत्यु होने पर दुख और नाराज़गी जायज़ है परन्तु दुख मे किसी से मारपीट या जानलेवा हमले से जान वापस आ जाती है ? उसका नतीजा भी समाज को झेलना पड़ता है, अब डाक्टर भी गंभीर मरीज का इलाज करने से डरते है और मरीज को अन्य जगह रेफर करने से कभी कभी सही समय पर इलाज नही मिलता और मरीज को नुकसान होता है.

२. अक्सर अब डाक्टर कुछ विशेष धर्म, समूह, कुछ विशेष स्थान के लोगो, कुछ विशेष प्रोफेशनल्स ( व्यवसाय) के लोगो का इलाज करने से कतराते हैं या डरते है. क्या यह सही है? डाक्टर को ऐसा नही करना चाहिए, परन्तु जान, माल, इज़्ज़त का डर तो सबको लगता है. पहले हम किसी भी गंभीर मरीज को सही होने की दिलासा देते थे, अब सबसे पहले बुरी प्रोग्नोसिस बताते है और गंभीर मरीज लेने से पहले अपने बचाव का रास्ता ढूंढते है, यह क्या मरीज के हित मे है?

३. चिकित्सा पेशे मे प्रोफेशनल ख़तरा हमेशा रहता है, कोई भी डाक्टर मरीज को जान बुझ कर नही मारता. कई बार हमारे पास कोई और विकल्प नही होता. लापरवाही और ग़लत निर्णय अलग अलग बातें हैं. मुझे आपरेशन करते समय १ या २ सेकंड मे निर्णय लेना होता है, उस समय मैं ना तो कोई किताब मे पढ़ सकता हूँ और कभी कभी अपने किसी साथी से सलाह भी नही ले पाता, और उस १ सेकंड मे लिया गया मेरा निर्णय ग़लत भी हो सकताहै, परन्तु मैने कोई लापरवाही नही की, यह बात अलग है की मेरे ग़लत निर्णय से मेरे मरीज को नुकसान हो सकता है, परन्तु ऐसी ही स्थिति मे मैने असंख्य जाने भी बचाई है, जो मेरे निर्णय लेने मे १ सेकंड की देरी से मर जाते. क्या आप समझते है, मरीज की साँस रुक गयी हो या फिर तेज़ी से खून बह रहा हो, कई बार तो हमे सोचने का समय भी नही मिलता और बिना कुछ सोचे समझे तुरंत निर्णय लेना पड़ता है, ऐसे समय मानव शरीर की प्रतिक्रिया हर मरीज मे अलग अलग होती है.

४. क्या नासा के डिस्कवरी मे कल्पना चावला नही मारी गयी, फिर क्या उन इन्जिनियरो या वैज्ञानिको पर हमला हुआ ? क्या इन्जिनियरो की ग़लती से पुल नही गिर जाते, जबकि उनके पास निर्माण के समय निर्णय लेने के लिए महीनो से लेकर वर्षों का समय होता है, उच्च न्यायालयों मे निचली अदालत का निर्णय पलट जाता जाता है, जबकि जज के पास सोचने और निर्णय लेने के लिए महीनो से लेकर वर्षो का समय और वकील होते है, क्या किसी जज को ग़लत निर्णय लेने के लिए कोई सज़ा मिली है? ट्रेन ड्राइवर की एक ग़लती से अनेक मौत हो सकती है, हवाई जहाज़ के पायलट की वजह से अनेक मौत हो जाती है, यह सब एक इंसान है. कोई ना कोई तो यह काम करेगा, जो भी करेगा उससे भी ग़लती हो सकती है मैं यह नही कह रहा हूँ की डाक्टरो को ग़लती करने का अधिकार है, परन्तु उनकी सीमाओ का भी ध्यान रखना चाहिए. यदि कोई बड़ी ग़लती है, तो क़ानूनन कार्यवाही होनी चाहिए, ना की जानलेवा हमला. खून का बदला खून.

५. यदि डाक्टर गंभीर मरीज नही देखेंगे, तो कौन इलाज करेगा. अचानक पेट दर्द होने पर डाक्टर ही याद आएगा, उस समय ना तो कोई विधायक, सांसद या डी. एम. साहब और ना ही कप्तान काम आएँगे.

६. मित्रो, एक चिकित्सक दिन रात काम करता है, पैसे के लिए नही, प्रोफेशनल जिम्मेदारी बस . कई बार डॉ रात मे ३ बजे तक दुर्घटनाग्रस्त मरीज का आपरेशन करते हैं फिर उसके बाद सोते हैं. दोबारा अगर सुबह ६ बजे एक इमरजेंसी फिर अगर आ गयी, तो वो फिर हॉस्पिटल मे. क्या हम इंसान नही है, क्या हमें नींद नही आती ?
मित्रो, क्या आपको रात मे कभी ज़रूरत होने पर किसी भी कीमत पर प्लंबर , सफाई कर्मचारी, इंजीनियर,वकील,C
A, मजदूर की सेवाएँ मिल पाती है, नही ना, फिर तो डाक्टर की सेवाओ की कद्र कीजिए.

७. मित्रो, आपने अपने कालेज के दिनो मे देखा ही होगा, जिन बच्चो के मेडिकल मे एडमिशन हुए थे, वे और बच्चो की तुलना मे कितने होनहार थे और वे कितने घंटे पढ़ते थे , शायद आप भी उनकी क़ाबलियत से सहमत होंगे, फिर वही छात्र आगे डाक्टर बनकर इतने लापरवाह, कामचोर हो सकते है ? जबकि हर माँ बाप अपने बच्चो को डाक्टर बनाना चाहता है, यदि वे नही पढ़े और बाद मे बढ़े होकर उन होनहार डाक्टरो की कमियाँ निकालने लगे.

८. मित्रो, कई बार हम दिन रात काम प्रोफेशनल मजबूरी मे करते है. एक बार मेरे अपने बेटे के जन्मदिन का केक शाम ७ बजे के बजाए रात मे ११.३० कटा, क्योंकि मैं खुद एक एमरजेंसी आपरेशन कर रहा था. एक दो बार अपनी पत्नी के जन्मदिन पर बाहर खाना खाने नही जा पाए, क्योंकि मैं मरीज़ो मे व्यस्त था, अब बताएँ हमारे परिवार पर क्या बीतती होगी. जब पत्नी कहती है की बेटा अभी पापा के पास समय नही है हम बाजार नही जा पायेन्गे. मेरे कई मित्र गवाह हैकि उनके यहाँ फंक्शन मे मैं कितने समय पर पहुँच पाया. ऐसा नही है की मैं जाना नही चाहता था, बल्कि मुझे मरीज़ो के चक्कर मे देर हो गयी थी, फिर भी मैं लापरवाह कहलाता हूँ, क्योंकि मैं एक डाक्टर हूँ.

९. मित्रो, आजकल नकली दवाओ, नकली खाने का काम ज़ोर शोर से चल रहा है, सब जानते है पर कोई कुछ नही करता. लोग कहते की डाक्टर ने ग़लत इंजेक्शन लगाकर हमारे मरीज को मार दिया, परन्तु हमे भी नही पता की वो इंजेक्शन असली था भी या नही. क्योंकि कंपनी तो किसी नेता या उद्योगपति की होगी, उसे कुछ कह नही सकते बस डाक्टर को पीटो. छत्तीसगढ़ मे नकली दवा से नसबंदी की १८ महिलाओ की मौत हो गयी, सर्जन के खिलाफ कार्यवाही हुई, क्योंकि फैक्टरी तो हेल्थ मिनिस्टर के बेटे की थी.

१०. बहुत समय हम भी मरीज की मौत का कारण नही जानते जैसे - कई बार स्वस्थ बच्चा ( ६माह तक) अचानक बिना किसी बीमारी मर जाते है, पता नही क्या कारण है, जब स्वस्थ बच्चा मर सकता है तो बीमार क्यों नही, कई बार सफल आपरेशन के कई घंटे बाद मरीज की अचानक मौत क्यों हो जाती है, वास्तव मे कारण पता नही. स्वस्थ आदमी अचानक बिना किसी बीमारी के तुरंत मर जाताहै,मान लिया जाता हैं की हार्ट अटैक हुआ होगा, असली कारण पता नही. ऐसा ही कई बार हमारे काम भी हो जाता है, इसका मतलब यह नही की हमने ग़लत इलाज से उसे मार दिया. कुछ कारण अभी अज्ञात है.इसका मतलब यह नही डाक्टर को पीटने लगो.

मेरे कहने का यह मतलब नही की सभी डाक्टर सही है, कोई ग़लती नही हो सकती, परन्तु उसके लिए न्याय सम्मत कार्यवाही कीजिए, मुक़दमा कीजिए, मेडिकल एक्सपर्ट से बात कीजिए, परन्तु हमारे और हमारे परिवार के साथ मार पीट ना कीजिए. यदि हम गंभीर मरीज़ो को अपने सेवाए नही देंगे,अनेक अमूल्य जानें जा सकती है.

No comments:

Post a Comment