बकरीद पर किसका 'बलिदान'
आजतक के हल्ला बोल में उठा मुद्दा
आज 1 सितंबर को शाम 5: 58 बजे आजतक के जाने-माने डिवेट "हल्ला बोल" में बकरीद के एक दिन पूर्व 'बकरे की 'बोटी' शीर्षक से जोरदार बहस हुई। डिवेट में मुस्लिम समुदाय की ओर से चार धर्म गुरु और बीजेपी की और से डॉ संबित पात्रा, विश्व हिन्दू परिषद के तिवारीजी और हिन्दू महासभा के प्रवक्ता शामिल हुए। पूरी डिवेट को मैंने बड़े ही गौर से देखा। आजतक की एंकर अंजना ओम कश्यप ने दोनों पक्षों पर अनेक तीखे सवाल दागे।
यह डिवेट इसलिए कि गयी थी क्योंकि बकरीद पर होने वाली बेजुबान पशुओं की कुर्बानी को संघ की विचारधारा ने सही नहीं माना था, उनका कहना है कि
-बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी न दी जाय, केक काटकर मनाएं बकरीद।
-बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी कुरीति है।
-बकरीद पर कुर्बानी वैसे ही हराम है जैसे तीन तलाक।
-होली, बकरीद की तरह बकरीद भी हो इको फ्रेंडली।
इस डिवेट में बैठी जनता ने भी अनेक प्रश्न किये। एक युवती ने पूछा कि 'यह बलिदान का दिवस है, फिर इसमें किसने किसका बलिदान किया। बलिदान तो बकरे का हुआ। आपने क्या किया? इसके उत्तर में गरीब नवाज फॉउंडेशन के जाने माने प्रवक्ता अंसार रजा ने कहा कि पैसे का बलिदान किया। इस पर vhp के प्रवक्ता ने कहा यही पैसा आप गरीब, हॉस्पिटल, जरूरत मंद को बलिदान कर दें तो? इसका अंसार रजा कोई जबाब नहीं दे न ही उनके अन्य लोग।
एक दूसरी युवती ने पूछा कि जब हम इंसानों को जीने का हक है तो मूक प्राणियों को क्यों नहीं? एक दूसरी लड़की ने प्रश्न किया कि जैसे कोर्ट ने तीन तलाक को कुरीति माना है उसी प्रकार बकरीद को भी कुरीति में आना चाहिए। एक अन्य युवती ने पूछा कि पशु प्रेम बकरीद के एक दिन पहले ही क्यों?
एक मुस्लिम गुरु जो अंजना ओम कश्यप के तीखे प्रश्न को झेल नहीं पाए और वो डिवेट बीच में छोड़कर चले गए, परन्तु डिवेट छोड़ने के पहले वह यह बता चुके थे कि हमारे यहां 'बकरीद' शब्द कहीं नहीं आया है। उनके यह कहने से स्पष्ट था कि "बकरे" को बलि का बकरा बनाया जा रहा है। मुस्लिम धर्म गुरुओं ने यह भी स्पष्ट किया कि इब्राहिम की परीक्षा लेते समय अल्लाह ने अपनी सबसे प्रिय वस्तु कुर्बान करने के लिए कहा था और इब्राहिम ने अपने बेटे की कुर्बानी का फैसला लिया। इससे स्पष्ट था कि कहीं भी अल्लाह ने पशु या बकरे की बलि के लिए नहीं कहा। भला, बकरे का खून ही अल्लाहताला को प्रिये हो और वह उससे परितृप्त होता हो, यह क्या बात हुई।क्या सृष्टि की सर्वोत्तम शक्ति इतनी कमजोर है कि उसे बकरों के खून की तलब है? सिर्फ बकरे की कुर्बानी क्यों?
अब तो अनेक मुस्लिम मंच भी पशुओं की बलि के विरोध में आ गए हैं। मुस्लिम मंच के प्रमुख राजा रईस खान ने कुरान और हदीस साहब का हवाला देकर कहा , कहीं भी बकरीद पर किसी भी बेजुबान जानवर की कुर्बानी को हमारे पैगम्बर ने किसी जानवर की कोई कुर्बानी नहीं की है बल्कि रहमत बरती है।
मैं समझता हूं कि परमात्मा की राह में मैं-पने की व ममत्त्व की कुर्बानी जरूरी है, न कि किसी बकरे की। अहंकार और ममत्व का त्याग ही सच्ची कुर्बानी है।
आज की इस डिवेट मैं कोई भी बेजुबान पशुओं की बलि को सही सिद्ध नहीं कर पाया। बल्कि जब सच्चाई का सामना नहीं कर पाए तो एक प्रवक्ता डिवेट छोड़कर चले गए ।
जिस तरह दीपावली पर पर्यावरण को दृष्टि में रखते हुए पटाखे नहीं चलाने की अपील की जाती है, होली पर पानी की बचत के लिए गुलाल से होली खेलने की अपील की जाती है तो क्या बकरीद पर मूक पशुओं की कुर्बानी के बिना मनाने की अपील करना क्या कोई गुनाह है?
-डॉ सुनील संचय
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