दूरदर्शन के एक दक्षिण भारतीय भाषा के चैनल से श्री पी एम नायर जोकि एक सेवा निवर्त प्रसाशनिक अधिकारी है और वो पूर्व राष्ट्रपति स्व श्री ए पी जे कालाम साहब के निजी सचिव उस वक्त थे जब कालाम साहब देश के राष्ट्रपति थे।
उनके उस इंटरव्यू के दौरान श्री नायर साहब ने जो कुछ भी कहा वो पूरी तरह से तो यहा नही पेश के पाऊंगा पर कुछ महत्व पूर्ण बिंदुओं को आपके सामने लाना चाहता हूं।
श्री नायर ने एक किताब भी लिखी है जिसका शीर्षक है *"कालाम इफ़ेक्ट"*
१. डॉ कालाम अपनी हर विदेश यात्रा में बहुमूल्य उपहार प्राप्त करते थे जो कि प्रथा अनुसार मेजबान देश के प्रमुख मेहमान देश प्रमुख को उनके सम्मान स्वरूप देते है।
उन उपहारों को प्राप्त करने से मना करना मेजबान देश का अपमान होगा अतः कालाम साहब उन उपहारों को धन्यवाद के साथ स्वीकार करते थे।
परंतु देश वापिस आते ही वो उन उपहारों के फोटो खिंचवाकर उनकी सूची तैयार करवाकर उन को राष्ट्रपति भवन के संग्रहालय को सौप देते थे। फिर कभी भी उन उपहारों के बारे में पूछते भी नही थे।
कालाम साहब जब सेवा निवर्त हुए तो उन उपहारों से एक पेंसिल भी अपने साथ नही ले गए। सारे के सारे उपहार राष्ट्रपति भवन के संग्रहालय में रहे।
२. २००२, ये वो साल है जब श्री कालाम भारत के राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए थे, रमजान जुलाई अगस्त के महीने में आया था।
इस अवसर पर इफ्तार की भोज को आयोजन करना राष्ट्रपति भवन की एक सामान्य प्रक्रिया थी।
डॉ कालाम ने श्री नायर को बुलाकर इस आयोजन पर आने वाले खर्च को पूछा और साथ मे पूछा कि वो क्यो इस इफ्तार भोज का आयोजन ऐसे व्यक्तियों के लिए करे जो स्वयम ही पहले से समर्थ है और प्रतिदिन अच्छा भोजन प्राप्त करते है?
श्री नायर ने उन्हें बताया कि तकरीबन बाइस लाख रुपया उस इफ्तार भोज के आयोजन पर राष्ट्रपति भवन का खर्च होता था।
डॉ कालाम ने उन्हें आदेश दिया कि वो सारी रकम को कुछ अनाथालयों में वस्त्र, भोजन और कम्बलों के रूप में दान की जाए।
उन्होंने अनाथालयों का चुनाव करने के लिए एक टीम को जिम्मेदारी दी उस चुनाव के कार्य मे उन्होंने किसी भी प्रकार का दखल नही दिया।
जब टीम ने अनाथालयों की सूची तैयार कर ली तो कालाम साहब ने श्री नायर को अपने कमरे में बुला कर एक लाख रुपये का चेक, जो कि उनके निजी खाते से काटा हुआ था, दिया और कहा कि वो अपनी निजी बचत से ये थोड़ा सा धन दे रहे है जो अनाथलयो में दान किया जाए। उन्होंने साथ मे ये हिदायत दी कि उस चेक के बारे किसी को भी न बताया जाए।
श्री नायर ने उस इंटरव्यू में बताया कि वो कालाम साहब की उस हिदायत को सुनकर अचंभे में आ गये। उन्होंने कालाम साहब को कहा कि वो क्यो न सबको उस बात को बताये की इस देश के राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति है जो न केवल अपने अधिकार से जो खर्च कर सकते वो सारा धन, दान में देते है बल्कि खुद के निजी खाते से भी दान देते है
डॉ कालाम यद्यपि एक धार्मिक मुस्लिम थे, पर उनके कार्यकाल
में राष्ट्रपति भवन में इफ्तार का भोज का आयोजन नही हुआ।
३. डॉ कालाम को हा में हा मिलाने वाले लोग पसंद नही थे।
एक बार देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति महोदय से मुलाकात को पधारे थे और किसी विषय पर विचार विमर्श के दौरान डॉ कालाम ने एक बिंदु पर किसी बात पर अपने विचार प्रकट किए फिर उन्होंने नायर साहब से पूछा कि "क्या आप मेरी बात से सहमत है?"
"नही श्रीमान मैं आपकी बात से सहमत नही हूँ।" नायर साहब ने उनको जवाब दिया।
मुख्य न्यायाधीश महोदय को अपने कानों पर विश्वास नही हुआ कि एक सचिव की इतनी हिम्मत की वो राष्ट्रपति जी की बात से सहमत न हो और वो भी अन्य उपस्थित व्यक्तियों के समक्ष।
तब श्री नायर ने उन्हें बताया कि राष्ट्रपति जी उनसे पूछेगें की वो क्यो असहमत है और वो यदि मेरे कारण बताने के बाद यदि उन्हें मेरे बताये कारण सही लगे तो 99% ये बात सही है कि वो अपना निर्णय बदल देंगे।
४. एक बार उन्होंने अपने पचास रिस्तेदारो को दिल्ली बुलाया और उन्हें राष्ट्रपति भवन में ठहराया।
उन्होंने उनके दिल्ली दर्शन के लिए एक बस का प्रबंध करवाया और उस बस का किराया स्वयम के निजी खाते से वहन किया।
कोई भी सरकारी वाहन उन रिस्तेदारो के लाने लेजाने के लिए प्रयोग नही किया।
उन रिस्तेदारो के ठहरने के दौरान उन रिस्तेदारो के ऊपर जो भी खर्च उनको भोजन और ठहरने की व्यवस्था पर हुआ उसका पूरा हिसाब मांगा जो लगभग दौ लाख के आसपास हुआ। कालाम साहब ने वो सारा खर्च अपने निजी धन से वहन किया।
इस देश के इतिहास में उनसे पहले किसी ने भी ऐसा नही किया था।
अब आप एक और घटना को सुने।
डॉ कालाम के बड़े भाई उनके साथ उन्ही कमरे में पूरे एक सप्ताह रहे। ऐसा डॉ कालाम की इच्छा के अनुसार हुआ।
जब वो वापिस गए तो डॉ कालाम ने उनके रहने के दिनों का किराया भी देना चाहा।
जरा कल्पना कीजिये कि कोई राष्ट्रपति अपने रहने के कमरे का भी किराया देना चाहता था।
ये वैसे राष्ट्रपति भवन के कर्मचारियों ने नही माना और सबने सोचा कि ये तो ईमानदारी की परकाष्ठा थी।
५. जब राष्ट्रपति कालाम साहब का कार्यकाल पूरा हुआ तब राष्ट्रपति भवन के सभी कर्मचारी अपने परिवार सहित उनके सम्मानार्थ उनसे भेंट करने गए।
श्री नायर उनसे मिलने अकेले गए तो कालाम साहब ने उनके परिवार के बारे में पूछा तब उन्हें पता चला की नायर साहब की पत्नी एक दुर्घटना के कारण पांव की हड्डी टूटने की वजह से चल नही पा रही थी और घर पर थी।
अगले दिन सुबह श्री नायर ने देखा कि बहुत से पुलिस वाले उनके घर के बाहर खड़े थे तो उन्होंने उसका कारण पूछा तो पता चला कि राष्ट्रपति महोदय स्वयम ही उनके घर आ रहे थे। कालाम साहब श्री नायर के घर जाकर उनकी पत्नी से मिले उनका हाल चाल पूछा और कुछ समय भी बिताया।
श्री नायर ने बताया कि कोई भी राष्ट्रपति अपने सचिव के घर कभी भी नही जाएगा और वो भी इतने साधारण वजह के लिए।
मेरे मित्र ने सोचा कि वो हमें ज्यादा से ज्यादा उस प्रसारित इंटरव्यू की बाते हमको बताये क्योकि वो दक्षिण भाषा के दूरदर्शन चेनल से प्रसारित हुआ था जिसे शायद ही किसी ने इस देश के भाग में देखा हो। इसलिए ये उस इंटरव्यू की बाते मुझे इंग्लिश भाषा मे भेजी उसे मैने सब की जानकारी के लिए हिंदी भाषा मे रूपान्तरित किया है।
हा एक बात और जो उस इंटरव्यू के दौरान पता चली की कालाम साहब के छोटे भाई एक छतरी की मरम्मत करने की दुकान चलाते है। श्री नायर उनसे जब श्री कालाम साहब के अंतिम संस्कार के दौरान मिले तो उन्होंने श्री नायर के पांव छू लिए जोकि उनकी अपने बड़े भाई कालाम साहब और श्री नायर के प्रति श्रद्धा का प्रतीक था।
ये कुछ ऐसी बाते है जिनका प्रसार जन जन के बीच हो ताकि इनसे प्रेरणा लेकर शायद कुछ और कालाम इस पवित्र धरती पर पैदा हो।
व्यवसायी प्रसार के साधन शायद ही इन बातों को प्रसारित करे क्योकि इन बातों की टेलिविज़न रेटिंग पॉइंट यानी टीआरपी कीमत नही है।
कृपया आप इसे अवश्य ज्यादा से ज्यादा आगे इसे प्रसारित करे ताकि संसार को इस विभूति के बारे में ज्यादा से ज्यादा पता चले।
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