Friday, 19 May 2017

Indian mythology about Earth

कैसे आएगा प्रलय और होगा महाविनाश, ऐसे पता चल जाएंगे सही समय और लक्षण

Indian mythology
ऋग्वेद (नारदीयसूक्त) 10-129 में कहा गया है सृष्टि के आदिकाल में न सत्य था न असत्य न वायु थी न आकाश, न मौत थी और न अमरता, न रात थी न दिन, उस समय केवल वही एक था जो वायुरहित स्थिति में भी अपनी शक्ति से सांस ले रहा था। उसके अतिरिक्त कुछ नहीं था।
प्रलय क्या है
प्रलय का अर्थ होता है संसार का अपने मूल में हमेशा के लीन हो जाना। प्रकृति का ब्रह्म में लीन हो जाना ही प्रलय है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड की प्रकृति कही गई है। जिस तरह पेड़, पौधे, प्राणी, मनुष्य, पितृ और देवताओं की उम्र निश्चित है, उसी तरह ब्रह्मांड की भी आयु है। इस धरती, सूर्य, चंद्र सभी की उम्र है। जब महाप्रलय होता है तो सारा ब्रह्मांड वायु की शक्ति से एक ही जगह खिंचाकर एकत्रित होकर नष्ट हो जाता है। सिर्फ ईश्वर ही विद्यमान रह जाते हैं। न ग्रह होते हैं, न नक्षत्र, न अग्नि, न जल, न वायु, न आकाश और न जीवन। फिर अनंत काल के बाद से नई सृष्टी आरभ हो जाती है।

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पुराणों के अनुसार
पुराणों अनुसार हर वस्तु और व्यक्ति की सांसे निश्चित है। जब तक सांस चलेगी तब तक ही कोई वस्तु या व्यक्ति जिंदा रहेगा। वेद अनुसार जिंदा व्यक्ति ही नहीं बल्कि पूरा ब्रह्मांड सांस ले रहा है। सांसों से ही शरीर चल रहा है। छः सांस से एक विनाड़ी बनती है। साठ सांसों से एक नाड़ी बनती है साठ नाड़ियों से एक दिवस (दिन और रात्रि) बनते हैं। तीस दिवसों से एक महीना बनता है। एक नागरिक (सावन) मास सूर्योदयों की संख्याओं के बराबर होता है। एक चंद्र मास, उतनी चंद्र तिथियों से बनता है। एक सौर मास सूर्य के राशि में प्रवेश से निश्चित होता है। यानी सारी गतिविधियां सांसों से बनी है।



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कैसे होती है उत्पति और विनाश
गर्भकाल - गर्भकाल करोड़ों वर्ष पहले पूरी धरती जल में डूबी हुई थी। जल में ही तरह-तरह की वनस्पतियों का जन्म हुआ और फिर वनस्पतियों की तरह ही एक कोशीय बिंदु रूप जीवों की उत्पत्ति हुई, जो न नर थे और न मादा।
शैशव काल - फिर पूरी धरती जब जल में डूबी हुई थी तब जल अंदर अंडज, सरीसृप ,केवल मुख और पक्षी जैसे जीव पैदा हुए।
कुमार काल - इसके बाद कीटभक्षी, हाथ, पैर, नाक कान व हाथ पैर वाले युक्त जीवों की उत्पत्ति हुई। इनमें मानव रूप वानर, वामन, मानव आदि भी थे।
युवा काल - फिर कृषि, गाय पालने वाले, शासन करने वाले समाज संगठन की प्रक्रिया हजारों वर्षों तक चलती रही।
किशोर काल - इसके बाद भ्रमणशील, आखेटक, वन्य संपदाभक्षी, गुफा में रहने वाले, जिज्ञासु अल्पबुद्धि प्राणियों का विकास हुआ।
प्रौढ़ काल - वर्तमान में प्रौढ़ावस्था का काल चल रहा है, जो लगभग विक्रम संवत २०४२ से पहले शुरू हुआ माना जाता है। इस काल में अतिविलासी, दयाहीन, चरित्रहीन, लोलुप, मशीनों के अधीन रहने वाले लोग होंगे जो प्रकृति को नुकसान पहुंचाएंगे ।
जीर्ण काल - आने वाले समय में अन्न, जल, वायु, ताप सबका अभाव होगा और धरती पर जीवों का विनाश होगा।
उपराम काल - इसके बाद करोड़ों वर्षों आगे तक ऋतु अनियमित, सूर्य, चन्द्र, मेघ सभी विलुप्त होंगे। भूमि पर आग ही आग हो जाएगी। अकाल और प्रकृति प्रकोप के बाद ब्रह्मांड में प्रलय होगा।


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कब होगा सृष्टि में प्रलय

सूर्य सिद्धांत के अनुसार समय का सबसे छोटा मापन तृसरेणु होता है। उससे बड़ा त्रुटि। उससे बड़ा वेध। उससे बड़ा लावा। उससे बड़ा निमेष। उससे बड़ा क्षण। उससे बड़ा काष्ठा। उससे बड़ा लघु। उससे बड़ा दण्ड। उससे बड़ा मुहूर्त। उससे बड़ा याम। उससे बड़ा प्रहर। प्रहर से बड़ा दिवस। दिवस से बड़ा अहोरात्रम। उससे बड़ा पक्ष (कृष्ण पक्ष, शुक्ल पक्ष)। पक्ष से बड़ा मास। दो मास मिलकर एक ऋतु। ऋतु से बड़ा अयन। अयन से बड़ा वर्ष। वर्ष से बड़ा दिव्य वर्ष (देवताओं का वर्ष)। उससे बड़ा युग। चार युग मिलाकर महायुग। महायुग से बढ़ा मन्वन्तर। उससे भी बढ़ा कल्प और सबसे बड़ा ब्रह्मा का दिन और आयु। प्रत्येक कल्प के अंत में एक प्रलय होता है, यानी चार युगों के चक्रांत में धरती पर से जीवन समाप्त हो जाता है। एक कल्प को चार अरब बत्तीस करोड़ मानव वर्षों के बराबर का माना गया है। यह ब्रह्मा के एक दिन के बराबर है। चार अरब वर्ष पूर्व जीवन की उत्पत्ति मानी गई है। दो कल्पों को मिलाकर ब्रह्मा की एक दिन और रात्रि मानी गई है। यानी 259,200,000,000 वर्ष। ब्रह्मा के बारह मास से उनका एक वर्ष बनता है और सौ वर्ष ब्रह्मा की आयु होती है

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