Sunday, 16 April 2017

Isis ka sach

हाल ही में Dialogue India पत्रिका और नवोदय टाइमस अखबार में वरिष्‍ठ पत्रकार विनीत नारायण का एक लेख प्रकाशित हुआ है। समाजशास्‍त्री डॉ. पीटर हैमंड ने दुनिया भर में मुसलमानों की प्रवृत्ति पर गहरे शोध के बाद एक पुस्‍तक लिखी है- 'स्‍लेवरी, टेररिज्‍म एंड इस्‍लाम- द हिस्‍टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्‍परी थ्रेट'। मैं एक समाजशास्‍त्र का विद्यार्थी हूं, इसलिए कह सकता हूं कि सेक्‍यूलर नामक प्रजाति अपना पूर्वग्रह छोड़कर और मुसलमान अपनी धार्मिक भावनाओं को छोड़कर दुनिया भर के आंकड़ों पर गौर करें, देखें कि आखिर ऐसा क्‍या है कि उनकी जनसंख्‍या बढ़ते ही वह मारकाट, हिंसा और दूसरे धर्म के मानने वालों के नरसंहार पर उतर आते हैं। इस पुस्‍तक के शोध का निषकर्ष है:

* जब तक मुसलमानों की जनसंख्‍या किसी देश-प्रदेश में 2 फीसदी रहती है, वह शांतिप्रिय, कानूनपसंद अल्‍पसंख्‍यक बनकर रहते हैं, जैसे अमेरिका जहां मुसलमानों की जनसंख्‍या (0.6) फीसदी है।

* जब मुसलमानों की जनसंख्‍या 2 से 5 फीसदी होती है तक वह अपना धर्म प्रचार शुरू कर देते हैं जैसे डेनमार्क जर्मनी आदि

* जब मुसलमानों की जनसंख्‍या 5 फीसदी से ऊपर जाती है वह अन्‍य धार्मिक समूहों, सरकार व बाजार पर 'छोटी छोटी बात जैसे- हलाल' मांस दुकानों में रखने आदि का दबाव बनाने लगते हैं। जैसे फ्रांस, फिलीपीन्‍स, स्‍वीडन, स्विटजरलैंड आदि

* ज्‍यों ही मुसलमानों की जनंसख्‍या 5 से 8 फीसदी तक पहुंचती है वह अपने लिए अलग शरियत कानून की मांग करने लगते हैं। बात बात पर उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होने लगती हैं। दरअसल उनका अंतिम लक्ष्‍य यही है कि पूरा संसार शरियत कानून पर ही चले और इसी लक्ष्‍य के लिए पूरा मुस्लिम जगह प्रयासरत है।

* जब मुसलमानों की जनसंख्‍या 10 फीसदी से अधिक हो जाती है तो वह धार्मिक आजादी आदि के नाम पर तोडफोड, दंगा फसाद, शुरू कर देते हैं। जैसे डेनमार्क, इजराइल, गुयाना आदि

* ज्‍यों ही मुसलामनों की जनसंख्‍या 20 फीसदी के पार पहुंचती है, जेहाद शुरू हो जाता है। दूसरे धर्मों के मानने वालों की हत्‍याएं शुरू हो जाती है। समान नागरिक कानून का विरोध किया जाता है, अपने लिए अलग सुविधाओं की मांग की जाने लगती है। इस्‍लामी आतंकवाद व अलगाववाद आदि की घटनाएं तेजी से होने लगती है। जैसे भारत, इथोपिया आदि

* ज्‍यों ही मुसलमान किसी देश, प्रदेश या क्षेत्र में 40 फीसदी के पास पहुंचते हैं दूसरे धर्म के मानने वालों का नरसंहार शुरू कर देते है। सामूहिक हत्‍याएं होने लगती हैं जैसे लेबानान, बोस्निया आदि

* जब मुसलमान कहीं भी 60 फीसदी से अधिक होते हैं 'जातीय सफाया' शुरू हो जाता है। दूसरे धर्मावलंबियों का पूरी तरह से सफाया या उसका इस्‍लाम में धर्मांतरण ही 'आखिल इस्‍लामी' लक्ष्‍य है। जाजिया कर लगाना, दूसरे धर्मों के पूजा स्‍थल का पूरी तरह से नाश करना आदि होने लगता है। जैसे भारत के कश्‍मीर से कश्‍मीरी पंडितों का सफाया।

* मुसलमानों के 80 फीसदी पर पहुंचते ही कोई देश सेक्‍युलर नहीं रह सकता। उसे इस्‍लामी बना दिया जाता है। 56 इस्‍लामी देशों में से एक भी मुल्‍क ऐसा नहीं है जिसका राजधर्म इस्‍लाम न हो। ऐसे राज्‍य में सत्‍ता और शासन प्रयोजित जातीय व धार्मिक सफाई अभियान शुरू हो जाता है। पैसे पाकिस्‍तान व बंग्‍लादेश से हिंदुओं का पूरी तरह से सफाया हो गया। मिस्र, गाजापटटी, ईरान, जोर्डन, मोरक्‍को, संयुक्‍त अरब अमिरात में आज खोजे से भी अन्‍य धर्मावलंबी नहीं मिलते।

भारत के सेक्‍युलर प्रजाति यह झूठ फैलाती आयी है कि भारत में इस्‍लाम तलवार नहीं सूफी आंदोलन के जोर पर फैला। वर्तमान में देखिए, सूफी आंदोलन तो कहीं नहीं दिखेगा, लेकिन तलवार का जोर आज भी हिज्‍बुल, आईएसआईएस, तालीबान, लश्‍कर के रूप में और पाकिस्‍तान, बंग्‍लादेश एवं अन्‍य मुस्लिम देशों के शासकों के रूप में हर तरफ दिखता है। इस्‍लाम वास्‍तव में कोई धर्म नहीं, एक राजनैतिक व सामाजिक विचारधारा है, जिसका आखिरी लक्ष्‍य पूरी दुनिया को शरियत कानून के अंतर्गत लाकर 'अखिल इस्‍लामी विश्‍व की स्‍थापना करना है। 

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