निवेदन :
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ईश्वर ने प्रत्येक मनुष्य को सम्पूर्णता प्रदान करने में अपनी तरफ से कोई कमी नही छोड़ी परन्तु मनुष्य ने स्वयं की गलतियों से शरीर को रोगी और अपूर्ण बना दिया | योग अपने आप में पूर्ण वैज्ञानिक विद्या है | हमारे ऋषियों ने योग का प्रयोग भोग के वजाय आध्यात्मिक प्रगति करने के लिए जोर दिया है जो नैतिक दृष्टि से सही भी है | परन्तु ईश्वर की सृष्टि को बनाये रखने के लिए संसारिकता भी आवश्यक है, वीर्यवान व्यक्ति ही अपना सर्वांगीण विकास कर सकता है,संतानोत्पत्ति के लिए वीर्यवान होना आवश्यक है पौरूषवान (वीर्यवान) व्यक्ति ही सम्पूर्ण पुरुष कहलाने का अधिकारी होता है | वीर्य का अभाव नपुंसकता है इसलिए मौज-मस्ती के लिए वीर्य का क्षरण निश्चित रूप से दुखदायी होता है | ऐसे व्यक्ति स्वप्नदोष,शीघ्रपतन और नपुंसकता जैसे कष्ट सहने को विवश होते हैं |
इन रोगों की चिकित्सा के लिए जब हमने योग की इन रहस्यमयी विधियों का प्रयोग प्रारंभ किया तो कई बार तथाकथित ज्ञानियों का विरोध भी सहना पड़ा …कि आप इस पवित्र ज्ञान का प्रयोग किस रूप में कर रहे हो …..आदि आदि | इसलिए आप सब से निवेदन है कि आप इन योग विधियों का प्रयोग करके वीर्यवान बनें,और अपनी अध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाएं, इनका दुरूपयोग मौज-मस्ती के रूप में न करें |
1. वज्रोली क्रिया :
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जब भी मूत्र त्याग करे तब एकदम से मूत्र को रोक ले .कुछ सेकेण्ड रोकें ..फिर नाड़ियों को ढीला छोड़ें और मूत्र निकलने दे ..पुनः रोके इस तरह मूत्र त्याग के दौरान कई बार इस क्रिया को करें | इस क्रिया के द्वारा नाड़ियों में शक्ति आएगी .फिर वीर्य के स्खलन को भी आप कंट्रोल कर सकेंगे | हमारा मस्तिष्क मूत्र त्याग व वीर्य स्खलन में भेद नही कर सकता ….यही कारण है कि इस क्रिया द्वारा स्खलन के समय में उसी अनुपात में बढ़ोत्तरी होती है जिस अनुपात में आप मूत्र त्याग के समय कंट्रोल कर लेते �
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