Sunday, 8 May 2016

" ध्यान क्या है "

" ध्यान क्या है "
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ध्यान का अर्थ है : समर्पण |
ध्यान का अर्थ है :
अपने को पूरी तरह छोड़ देना परमात्मा के हाथों में |
ध्यान कोई क्रिया नहीं है, जो आपको करनी है |
ध्यान का अर्थ है : कुछ भी नहीं करना है और छोड़ देना है उसके हाथों में ,
जो कि सचमुच ही हमें सम्हाले हुए है |
ध्यान के लिए पहली बात तो स्मरण रखना : समर्पण , सरेंडर , टोटल सरेंडर |
जिसने अपने को थोडा भी पकड़ा वह ध्यान में नहीं जा सकेगा ;
क्योंकि अपने को पकड़ना यानी रुक जाना अपने तक
और छोड़ देना यानी पहुंच जाना उस तक ,
जहां छोड़ कर हम पहुंच ही जाते हैं |
ध्यान में जाने के लिए तीन सीढियां है :
पहला सीढ़ी है : बहने का अनुभव :-
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बहने का मतलब है , नदी में तैरना नहीं बहना , नदी के साथ एक हो जाना है| नदी जहां ले जाए वहीं हमारी मंजिल है | तब फिर नदी से कोई दुश्मनी नहीं रह जाती है |
समर्पण का पहला अर्थ है : इस जीवन के साथ हमारी कोई दुश्मनी न रह जाए | इस जीवन के साथ हम बह सकें , तैरें न |
दूसरी सीढ़ी : मरने का , मृत्यु का , मिट जाने का |
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जैसे कोई बीज मिटता है तो फिर अंकुर हो जाता है | जैसे कोई कली मिटतीं है तो फूल हो जाती है | जब कुछ मिटता है, तभी कुछ हो पाता है | जब हम आदमी की तरह मिटेंगे , तभी हम परमात्मा की तरह हो पाएंगे | जन्म की पहली कड़ी मृत्यु है | और जो मरना नहीं सीख पाता , मिटना नहीं सीख पाता , वह कभी भी उस विराट तक नहीं पहुंच पाता , जहां तक पहुंचने में सब कुछ छुट जाना जरूरी है|
तीसरी सीढ़ी है : तथाता
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तथाता का अर्थ है : चीजें जैसी हैं वैसी हैं | हमे उनसे कोई विरोध नहीं | पक्षी आवाज कर रहें , कर रहे हैं | धूप गरम है , है | हवाएं चलती हैं और ठंड मालूम पडती है , मालूम पडती है | जिंदगी जैसी है वैसी हमें स्वीकार है | न हम उसमें कोई बदल करना चाहते हैं , न कोई हेर - फेर करना चाहते हैं | हमारा कोई विरोध नहीं , हमारी कोई अस्वीकृति नहीं |
तथाता का अर्थ है : परिपूर्ण राजी हो जाना , टोटल एक्सेप्टेबिलिटी |
परमात्मा को जानना है अगर , तो जीवन को पूरी तरह स्वीकार करके ही जान सकेंगे |
तथता , सब स्वीकार |
इन तीनों सीढ़ियों को पार कर ध्यान में प्रवेश होता है |
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