तीन लाख बावन हज़ार रुपए
मई 2006 में राष्ट्रपति कलाम का सारा परिवार उनसे मिलने दिल्ली आया. कुल मिला कर 52 लोग थे. उनके 90 साल के बड़े भाई से ले कर उनकी डेढ़ साल की परपोती भी.
ये लोग आठ दिन तक राष्ट्रपति भवन में रुके. अजमेर शरीफ़ भी गए. कलाम ने उनके रुकने का किराया अपनी जेब से दिया.
यहाँ तक कि एक प्याली चाय तक का भी हिसाब रखा गया और उनके जाने के बाद कलाम ने अपने अकाउंट से तीन लाख बावन हज़ार रुपए का चेक काट कर राष्ट्रपति कार्यालय को भेजा.

उनके राष्ट्रपति रहते ये बात किसी को पता नहीं चली.
बाद में जब उनके सचिव नायर ने उनके साथ बिताए गए दिनों पर किताब लिखी, तो पहली बार इसका ज़िक्र किया.
इफ़्तार का पैसा अनाथालय को
इसी तरह नवंबर 2002 में रमज़ान के महीने में कलाम ने अपने सचिव को बुला कर पूछा, ''ये बताइए कि हम इफ़्तार भोज का आयोजन क्यों करें? वैसे भी यहां आमंत्रित लोग खाते-पीते लोग होते हैं. आप इफ़्तार पर कितना ख़र्च करते हैं?''
राष्ट्रपति भवन के आतिथ्य विभाग के प्रमुख को फ़ोन लगाया गया.
उन्होंने बताया कि इफ़्तार भोज पर मोटे तौर पर ढ़ाई लाख रुपए का ख़र्च आता है.

कलाम ने कहा, ''हम ये पैसा अनाथालयों को क्यों नहीं दे सकते? आप अनाथालयों को चुनिए और ये सुनिश्चित करिए कि ये पैसा बर्बाद न जाए.''
राष्ट्रपति भवन की ओर से इफ़्तार के लिए निर्धारित राशि से आटे, दाल, कंबल और स्वेटर का इंतेज़ाम किया गया और उसे 28 अनाथालयों के बच्चों में बांटा गया.
लेकिन बात यहीं ख़त्म नहीं हो गई.
कलाम ने नायर से कहा, ''ये सामान तो आपने सरकार के पैसे से ख़रीदवाया है. इसमें मेरा योगदान क्या हुआ? मैं आपको एक लाख रुपए का चेक दे रहा हूँ. उसका भी उसी तरह इस्तेमाल करिए जैसे आपने इफ़्तार के लिए निर्धारित पैसे का किया है, लेकिन किसी को ये मत बताइए कि ये पैसे मैंने दिए हैं.''
बारिश ने भी कलाम का ख़्याल रखा
राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भारत के सबसे सक्रिय राष्ट्रपति थे. अपने पूरे कार्यकाल में उन्होंने 175 दौरे किए. इनमें से सिर्फ़ सात विदेशी दौरे थे.
वो लक्ष्यद्वीप को छोड़ कर भारत के हर राज्य में गए.
15 अगस्त 2003 को कलाम ने स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर शाम को राष्ट्रपति भवन के लॉन में हमेशा की तरह एक चाय पार्टी का आयोजन किया.

क़रीब 3000 लोगों को आमंत्रित किया गया.
सुबह आठ बजे से जो बारिश शुरू हुई तो रुकने का नाम नहीं लिया. राष्ट्रपति भवन के अधिकारी परेशान हो गए कि इतने सारे लोगों को भवन के अंदर चाय नहीं पिलाई जा सकती.
आनन-फ़ानन में 2000 छातों का इंतज़ाम कराया गया.
जब दोपहर बारह बजे राष्ट्रपति के सचिव उनसे मिलने गए तो कलाम ने कहा, ''क्या लाजवाब दिन है. ठंडी हवा चल रही है.''
सचिव ने कहा, ''आपने 3000 लोगों को चाय पर बुला रखा है. इस मौसम में उनका स्वागत कैसे किया जा सकता है?''
कलाम ने कहा, ''चिंता मत करिए हम राष्ट्रपति भवन के अंदर लोगों को चाय पिलाएंगे.''
'ऊपर बात कर ली है'
सचिव ने कहा हम ज़्यादा से ज़्यादा 700 लोगों को अंदर ला सकते हैं. मैंने 2000 छातों का इंतज़ाम तो कर दिया है लेकिन ये भी शायद कम पड़ेंगे.

कलाम ने उनकी तरफ़ देखा और बोले, ''हम कर भी क्या सकते हैं. अगर बारिश जारी रही तो ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा... हम भीगेंगे ही न.''
परेशान, बदहाल नायर दरवाज़े तक ही पहुंचे थे कि कलाम ने उन्हें पुकारा और आसमान की ओर देखते हुए कहा, ''आप परेशान मत होइए. मैंने ऊपर बात कर ली है.''
उस समय दिन के 12 बज कर 38 मिनट हुए थे.
ठीक 2 बजे अचानक बारिश थम गई. सूरज निकल आया. ठीक साढ़े पांच बजे कलाम परंपरागत रूप से लॉन में पधारे. अपने मेहमानों से मिले. उनके साथ चाय पी और सबके साथ तस्वीरें खिंचवाई. सवा छह बजे राष्ट्र गान हुआ.
जैसे ही कलाम राष्ट्रपति भवन की छत के नीचे पहुंचे, फिर से झमाझम बारिश शुरू हो गई. अंग्रेज़ी पत्रिका वीक के अगले अंक में एक लेख छपा, क़ुदरत भी कलाम पर मेहरबान.
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