अब्दुल कलाम जी ने विवहा नही किया, अकेले थे,(सच में,राष्ट्रपति बनने के लिये झूठ में नही कहा कि मेरे आगे पिछे कोई नही), --एक बैग लेकर जिसमे दो जोड़ी कपड़े थे राष्ट्रपति भवन में प्रवेश किया, राष्ट्रपति भवन के बाकी सभी कमरे बंद करवा दिये, कहा की मुझे तो एक ही कमरे में सोना है, दो ही सब्जी बनने लगी राष्ट्रपति भवन में,(यह सोच कर कि देश में अभी भी कितने लोग भूखे सोते है) ---खर्चा कम कराएँगे बचायेगे ज्यादा ...देश सेवा करने आया हूँ ,विरासत कि जिंदगी नही जीने आया ... अब्दुल कलाम को सलाम .. दोस्तो किसी ने सच कहा है कि अपनी परेशानियो को कम करना है को अपनी जरूरतो को कम कर दो.परेशानिया खुद ब खुद कम हो जाऐगीं माना की सज़ा-ए-काबिल थे हम...
पर यकीं कर तू मेरा..
तेरे ही आदर्शों के कायल थे हम...
चमक गया तू अग्नि सा...
विशाल है तू पृथ्वी सा....
गरिमा थी तेरी...
गरिमा रहेगी...
तुर्बत ये तेरी...
तिरंगे से सजेगी..
तेरी क्या मिशाल दूँ..
तू तो बेमिशाल था..
अपने इस भारत का सपूत तू कलाम था..
कलाम तू कमाल था...
तेरी अंतिम सांस को...
भारत माँ का सलाम था...
तेरी अंतिम सांस को...
भारत माँ का सलाम था...
पर यकीं कर तू मेरा..
तेरे ही आदर्शों के कायल थे हम...
चमक गया तू अग्नि सा...
विशाल है तू पृथ्वी सा....
गरिमा थी तेरी...
गरिमा रहेगी...
तुर्बत ये तेरी...
तिरंगे से सजेगी..
तेरी क्या मिशाल दूँ..
तू तो बेमिशाल था..
अपने इस भारत का सपूत तू कलाम था..
कलाम तू कमाल था...
तेरी अंतिम सांस को...
भारत माँ का सलाम था...
तेरी अंतिम सांस को...
भारत माँ का सलाम था...
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