Wednesday 3 June 2015

एक रानी नहाकर अपने महल की छत पर बाल सुखाने के लिए गई।

एक रानी नहाकर अपने महल की छत पर बाल सुखाने के
लिए गई। उसके गले में एक हीरों का हार था, जिसे उतार
कर वहीं आले पर रख दिया और बाल संवारने लगी। इतने
में एक कौवा आया। उसने देखा कि कोई चमकीली चीज
है, तो उसे लेकर उड़ गया। एक पेड़ पर बैठ कर उसे खाने
की कोशिश की, पर खा न सका। कठोर हीरों पर मारते-
मारते चोंच दुखने लगी। अंतत: हार को उसी पेड़ पर
लटकता छोड़ कर वह उड़ गया।
जब रानी के बाल सूख गए तो उसका ध्यान अपने हार
पर गया, पर वह तो वहां था ही नहीं। इधर-उधर ढूंढा,
परन्तु हार गायब। रोती-धोती वह राजा के पास पहुंची,
बोली कि हार चोरी हो गई है, उसका पता लगाइए।
राजा ने कहा, चिंता क्यों करती हो, दूसरा बनवा देंगे।
लेकिन रानी मानी नहीं, उसे उसी हार की रट थी। कहने
लगी, नहीं मुझे तो वही हार चाहिए। अब सब ढूंढने लगे,
पर किसी को हार मिले ही नहीं।
राजा ने कोतवाल को कहा, मुझ को वह गायब हुआ हार
लाकर दो। कोतवाल बड़ा परेशान, कहां मिलेगा? सिपाही,
प्रजा, कोतवाल- सब खोजने में लग गए। राजा ने ऐलान
किया, जो कोई हार लाकर मुझे देगा, उसको मैं
आधा राज्य पुरस्कार में दे दूंगा। अब तो होड़ लग गई
प्रजा में। सभी लोग हार ढूंढने लगे आधा राज्य पाने के
लालच में। तो ढूंढते-ढूंढते अचानक वह हार किसी को एक
गंदे नाले में दिखा। हार तो दिखाई दे रहा था, पर उसमें
से बदबू आ रही थी। पानी काला था। परन्तु एक
सिपाही कूदा। इधर-उधर बहुत हाथ मारा, पर कुछ
नहीं मिला। पता नहीं कहां गायब हो गया। फिर कोतवाल
ने देखा, तो वह भी कूद गया। दो को कूदते देखा तो कुछ
उत्साही प्रजाजन भी कूद गए। फिर मंत्री कूदा।
तो इस तरह उस नाले में भीड़ लग गई। लोग आते रहे
और अपने कपडे़ निकाल-निकाल कर कूदते रहे। लेकिन हार
मिला किसी को नहीं- कोई भी कूदता, तो वह गायब
हो जाता। जब कुछ नहीं मिलता, तो वह निकल कर
दूसरी तरफ खड़ा हो जाता। सारे शरीर पर बदबूदार
गंदगी, भीगे हुए खडे़ हैं। दूसरी ओर दूसरा तमाशा, बडे़-
बडे़ जाने-माने ज्ञानी, मंत्री सब में होड़ लगी है, मैं
जाऊंगा पहले, नहीं मैं तेरा सुपीरियर हूं, मैं जाऊंगा पहले
हार लाने के लिए।
इतने में राजा को खबर लगी। उसने सोचा, क्यों न मैं
ही कूद जाऊं उसमें? आधे राज्य से हाथ
तो नहीं धोना पडे़गा। तो राजा भी कूद गया। इतने में एक
संत गुजरे उधर से। उन्होंने देखा तो हंसने लगे, यह
क्या तमाशा है? राजा, प्रजा, मंत्री, सिपाही -सब
कीचड़ में लथपथ, क्यों कूद रहे हो इसमें?
लोगों ने कहा, महाराज! बात यह है कि रानी का हार
चोरी हो गई है। वहां नाले में दिखाई दे रहा है। लेकिन
जैसे ही लोग कूदते हैं तो वह गायब हो जाता है।
किसी के हाथ नहीं आता।
संत हंसने लगे, भाई! किसी ने ऊपर भी देखा? ऊपर
देखो, वह टहनी पर लटका हुआ है। नीचे जो तुम देख रहे
हो, वह तो उसकी परछाई है।
इस कहानी का क्या मतलब हुआ? जिस चीज की हम
को जरूरत है, जिस परमात्मा को हम पाना चाहते हैं,
जिसके लिए हमारा हृदय व्याकुल होता है -वह सुख
शांति और आनन्द रूपी हार क्षणिक सुखों के रूप में
परछाई की तरह दिखाई देता है और यह महसूस होता है
कि इस को हम पूरा कर लेंगे। अगर हमारी यह
इच्छा पूरी हो जाएगी तो हमें शांति मिल जाएगी, हम
सुखी हो जाएंगे। परन्तु जब हम उसमें कूदते हैं, तो वह
सुख और शांति प्राप्त नहीं हो पाती।
इसलिए सभी संत-महात्मा हमें यही संदेश देते हैं कि वह
शांति, सुख और आनन्द रूपी हीरों का हार, जिसे हम
संसार में परछाई की तरह पाने की कोशिश कर रहे हैं, वह
ईशवर से जुडने से ही मिलेगा।

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