Saturday, 2 May 2015

अपनी रहमत की चादर तान दे मौला !


अपनी रहमत की चादर तान दे मौला !
उम्मीदों को फिर इक उड़ान दे मौला!!

फिर एक बार अमृत सा बरसाकर !
किसानों के खेतों को धान दे मौला!!

ढह रही जो इमारत गगन चूमती !
हौसलों का इक छोटा मचान दे मौला!!

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